Saturday, May 29, 2010

किसानो का आम

बहुत काम मेहनत में हर उम्र के लोगों को जोज्गर देता है.

उड़ीसा के जगदीशपुर जिला के बालितुथा और धिनकिया इलाके में तीन पंचयत ११ गानों को उजाड़ कर कोरियन कंपनी पोस्को स्टील प्लांट लगाने के लिए किसानो से जबरजस्ती जमीं अधिग्रहण करने का प्रयास का रही है। जंहा से ४००० परिवार विस्थापित होंगे, तथा २५००० आबादी उजड़ेंगे। यह इलाका धान की खेती के लिए तो बहुत अधिक उज्ज है ही साथ ही इस इलाके में पान की खेती भी बहित अधिक होता है। पोस्को प्रतिरोध संग्राम समिति के नेता सही रंजनजी बताते हैं, मै ७० पान का खेत है। एक बार पान का पौधा लगा दिया जाता है, jo ४० साल तक रहता है। किसानो ने बताया- एक पत्ता ३ रूपया में बेचते हैं। एक पुधा में हमेश २०-२५ पत्ता रहता ही है। जो तोड़ने लाएकहो जाता है, उससे तोड़ते जाते हैं। इस तरह एक पौधा से चालीस साल तक पत्ता तोड़ते हैं। राजन और उनके साथियों ने बताया , इस इलाका का पान पुरे देश में भेजा जाता है। हर किसान पान की खेते से लखनो रूपया कमाते हैं। किसान बताते हैं, पान की खेती में कोई अधिक म्हणत नहीं है। इस में १० साल के उम्र का आदमी भी नौकरी करता है, और ८० साल का बजुर्ग भी नौकरी करता है। किसान कहते हैं, हमारी जमीन पीढ़ी दर पीढ़ी नौकरी देता है।
उड़ीसा के बालितुथा और dheenkiya गाँव इलाके में गर्मी दिनों लह्ह्लाहती धान फसल, तथा कथित विकास के दलाल देश को आनाज खिलने वाली धरती को बंजरभूमि में तब्दील करना चाहते हैं। जो अपने विकास के रस्ते को खुद ही रोकना चाहते हैं. किसानो को इस धरती से मिटाना चाहते हैं। इस किसान विरोधी विकास को समय रहते रोकना चाहिए, ताकि कृषि का विकास को आगे बढ़ाते हुआ देश को विकास का नया मोडल दे सके.

स्टील नहीं अनाज चाहिए-कारखाना नहीं
धरती का विकास चाहिए

उड़ीसा के बलितुहा और धेएंकिया गाँव ईलाका जंहा एक साल में तीन बार धान की फसल होती है। इस उपजाऊ भूमि को नष्ट कर कोरिया की कंपनी पोस्को यंहा स्टील प्लांट लगाना चाहती है। इस इलाके का किसान धान, पण, मीन बचाओ का नारा बलंद कर किसी भी कीमत में पाने पूर्वजों की इस धरोहर को एक इंच भी कंपनी को नहीं देने का संकल्प लिए हैं। किसान पोको प्रतिरोध संग्राम समिति के बेनर तले संघर्ष का बिगुल भूंक चुके हैं.
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हमारी धोरोहर ही आप को जीवन दे सकता है। हमारा इतिहास ही देश को पर्यवार्नीय मूलक विकास का रह दिखा सकता है। जो मानव और प्रकृति के बीच रिश्ता कायम रख सकता है। यही आज के विश्व ग्लोबल वार्मिंग को रोक सकता है.

हमारी भाषा संस्कृति को मिटा कर पर्यावरण की रक्षा की बात बेमानी है।